aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "حاشیے"
मैं और भी काला हो गया हूँये हाशिए में लिखा हुआ है:
यूँ जवाब कापी पर हाशिए लगाते हैंदाएरे बनाते हैं
किसी हाशिए पे रक़म न होंमैं फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-बरतरी
मत्न के सब हाशिएजिन से ऐश-ख़ाम के नक़्श-ए-रिया बनते रहे!
क़ब्ज़े से तीरगी के सहर छूटने को थीमशरिक़ के हाशिए में किरन फूटने को थी
चेहरे की किताब के वरक़ पर!ज़ख़्मों ने जो हाशिए लिखे हैं
बारह महीनों के हाशिए मेरे सामने हैंदसवें महीने की ठंडी हवा
मख़्सूस हाशिए परटूटने का अलमिया ठहरी
मुझे रंगों से मोहब्बत थीज़िंदगी के कैनवस पर
आसमाँ के नीले नीले हाशिएचाँद की रानाइयों के नौहागर
इल्म-ओ-इरफ़ान के शाख़ इम्कान के दाएरे बन चुके हाशिए लग चुके थेमगर वो इलाही-सिफ़त पेंट की बोतलें काग़ज़ों पर उंडेले हुए
बरसों पहलेमैं ने तुम्हें हाशिए पे रख कर
सफ़्हे सफ़्हे पे जिस में हाशिए हैंतुम से बस इतना पूछना है मुझे
ज़रा देर गुज़री तो सफ़्हे पे नीचे की सतरों में उतरावो अब हाशिए पर पड़ा है
हर रोज़मक़ाम-ए-इंतिक़ाल पर
ख़याल ही ख़याल में, वो हाशिया-निगारियाँजो दे गया फ़रेब वो, शबाब ढूँढता हूँ मैं
इक सियह मातमी हाशिया बुन दिया हैहवा उस से कहना
मेरा काम भी तो सुनते जाओमैं हाशिया अंधी हूँ
अपने दाएँ हाथ की उँगली सेइक बे-हाशिया तस्वीर खींचूँ
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