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नज़्म
ये ख़ार-ज़ार-ए-जहाँ साफ़ कर रहा हूँ मैं
ज़मीन पर है बनाना मुझे ख़ुद अपना बहिश्त
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
सहरा हो, ख़ार-ज़ार हो, वादी हो, आग हो
इक दिन इन्हीं मुहीब मनाज़िल में हम भी हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़ार-ज़ार-ए-ग़म को पैरों से कुचलना है हमें
जादा-ए-मंज़िल में गिरना है सँभलना है हमें
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत
थे ख़ार-ज़ार जिस जा है बुलबुलों का मस्कन
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत ऐ वक़्त-ए-बे-मुरव्वत
थे ख़ार-ज़ार जिस जा है बुलबुलों का मस्कन
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
नीलम भट्टी
नज़्म
आज भी ख़ार-ज़ार-ए-ग़म ख़ुल्द-ए-बरीं मिरे लिए
आज भी रह-गुज़ार-ए-इश्क़ मेरे लिए है कहकशाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़ार-ज़ार-ए-ग़म-ए-हस्ती में रहेंगे कब तक
मुतरिब-ए-वक़्त कहीं छेड़ न दे तल्ख़ ग़ज़ल
मुस्लिम शमीम
नज़्म
उन के दम से था चमन ये ख़ार-ज़ार-ए-ज़िंदगी
था नफ़स उन का नसीम-ए-ख़ुश-गवार-ए-ज़िंदगी