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नज़्म
पहला बेटा कर के शादी बन गया हम पर 'अज़ाब
दूसरे ने बन के शा'इर कर लिया ख़ाना ख़राब
इक़बाल फ़िरदौसी
नज़्म
दुखती हड्डियों की भी सुन लीजिए ज़रा
इस ख़ाना-ख़राब-ए-दिल की मान कर ही तो आप हुए हैं ख़ाना-ख़राब
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
यादों के बे-म'अनी दफ़्तर ख़्वाबों के अफ़्सुर्दा शहाब
सब के सब ख़ामोश ज़बाँ से कहते हैं ऐ ख़ाना-ख़राब
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मस्त रहता है मगर अब भी दिल-ए-ख़ाना-ख़राब
शाम को बैठ के महफ़िल में लुंढाता हूँ शराब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ख़ाना-ख़राब हो के मैं ख़ूब ही दर-ब-दर हुआ
मुश्त-ए-ग़ुबार भी बना ज़र्रा-ए-रहगुज़र हुआ
फ़ज़ल हक़ अज़ीमाबादी
नज़्म
मीम हसन लतीफ़ी
नज़्म
पर अब मेरी ये शोहरत है कि मैं बस इक शराबी हूँ
मैं अपने दूदमान-ए-इल्म की ख़ाना-ख़राबी हूँ
जौन एलिया
नज़्म
छोड़ दे मुतरिब बस अब लिल्लाह पीछा छोड़ दे
काम का ये वक़्त है कुछ काम करने दे मुझे