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नज़्म
छुपी ख़ामोश आहें शोर-ए-महशर बन के निकली हैं
दबी चिंगारियाँ ख़ुर्शीद-ए-ख़ावर बन के निकली हैं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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छुपी ख़ामोश आहें शोर-ए-महशर बन के निकली हैं
दबी चिंगारियाँ ख़ुर्शीद-ए-ख़ावर बन के निकली हैं