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नज़्म
سماں 'الفقر فخري' کا رہا شان امارت ميں
''بآب و رنگ و خال و خط چہ حاجت روے زيبا را''
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नए उनवान से ज़ीनत दिखाएँगे हसीं अपनी
न ऐसा पेच ज़ुल्फ़ों में न गेसू में ये ख़म होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ये सब सही मिरे बचपन की शख़्सियत भी थी एक
वो शख़्सियत कि बहुत शोख़ जिस के थे ख़द-ओ-ख़ाल
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मुझे सोच कर, या खरोच कर, मेरी याद को न आवाज़ दो,
मुझे ख़त में लिख के ख़ुदाओं का न दो वास्ता
आरिफ़ इशतियाक़
नज़्म
उन को पलंग पे बैठे झड़ियों का ख़त उड़ाना
है जिन को अपने घर में याँ लोन तेल लाना