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नज़्म
तेरी और मेरी ख़ताओं की सज़ा क्यूँ भुगतें
उन पे क्यूँ ज़ुल्म हो जिन की कोई तक़्सीर नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुझे सोच कर, या खरोच कर, मेरी याद को न आवाज़ दो,
मुझे ख़त में लिख के ख़ुदाओं का न दो वास्ता