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नज़्म
एशिया वाले हैं इस नुक्ते से अब तक बे-ख़बर
फिर सियासत छोड़ कर दाख़िल हिसार-ए-दीं में हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं कि मायूसी मिरी फ़ितरत में दाख़िल हो चुकी
जब्र भी ख़ुद पर करूँ तो गुनगुना सकता नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ऊँचे दर से दाख़िल हो कर साफ़ नशेब में बैठे जा कर
एक मक़ाम में हुए इकट्ठे रौनक़ और वीरानी आ कर
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
ये अगर जन्नत में दाख़िल हो गए सिर्फ़ एक बार
फिर कहाँ जाएँगे हम जैसे शहीद-ए-हक़-शिआर
खालिद इरफ़ान
नज़्म
दाख़िल-ए-आदाब-ए-मय-नोशी हो साक़ी का अदब
मस्तियाँ हों मस्तियों के साथ हुश्यारी भी हो