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नज़्म
मेरी दानिस्त में हम-जिंस हैं होली और ईद
दोनों हैं लुत्फ़-ओ-मसर्रत के लिए रोज़-ए-सईद
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
नज़्म
मुँह ख़ुश्क दाँत ज़र्द बदन पर जमा है मैल
सब शक्ल क़ैदियों की बनाती है मुफ़्लिसी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
पापड़ जैसी हुईं हड्डियाँ जलने लगे हैं दाँत
जगह जगह झुर्रियों से भर गई सारे तन की खाल
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
अभी तो दाँत पीसती है मौत शहरयारों की
अभी तो ख़ूँ उतर रहा है आँखों में सितारों की
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
कल्ले पे कल्ला लग लग कर चलती हो मुँह में चक्की सी
हर दाँत चने से दलता हो तब देख बहारें जाड़े की