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नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
लेकिन इस दिन के लिए ऐ हम-नशीनो दोस्तो
कैसी कैसी बे-बहा क़ुर्बानियाँ देना पड़ीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
वतन से रुख़्सत-ए-'सिद्धार्थ' 'राम' का बन-बास
वफ़ा के ब'अद भी 'सीता' की वो जिला-वतनी