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नज़्म
गरेबाँ चाक हो मजनूँ-सिफ़त गर शौक़-ए-लैला है
फिरा कर दश्त-ए-वहशत में मिसाल-ए-क़ैस तू पहले
नारायण दास पूरी
नज़्म
उस लम्स का कोई नाम तो हो जो तुझ को सोच के जगता है
जो तेरे ज़िक्र के आते ही रग रग में दौड़ने लगता है
नाज़ बट
नज़्म
भय्या अब तो अख़बारों को छूते हुए डर लगता है
हर सुर्ख़ी में ख़ून-ख़राबा दहशत वहशत और हड़ताल