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नज़्म
वो दोशीज़ा भी शायद दास्तानों की हो दिल-दादा
उसे मालूम होगा 'ज़ाल' था 'सोहराब' का दादा
जौन एलिया
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
ज़बाँ से गर किया तौहीद का दावा तो क्या हासिल
बनाया है बुत-ए-पिंदार को अपना ख़ुदा तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हवाएँ मस्त-कुन ख़ुशबुओं से मामूर कर दी हैं
वो हाकिम क़ादिर-ए-मुतलक़ है यकता और दाना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तुम कि बन सकती हो हर महफ़िल में फ़िरदौस-ए-नज़र
मुझ को ये दावा कि हर महफ़िल पे छा सकता हूँ मैं