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नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आ 'जमाल'-ए-ज़ार को भी राज़दार-ए-दिल बना
ज़िंदगी इस की भी इक बर्क़-ए-दिल-ए-बिस्मिल बना
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
सूरत-ए-तस्वीर चुप 'बिस्मिल' हुए ये बोल कर
हुस्न की दुनिया है देखो दीदा-ए-दिल खोल कर
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
अगर बजा है तो 'बिस्मिल' की अर्ज़ भी सुन लो
चमन है सामने दो-चार फूल तुम चुन लो
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
आ कन्हैय्या कि तिरे वास्ते हम 'बिस्मिल' हैं
कहने सुनने के लिए दिल है मगर बे-दिल हैं
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
तू ने दस्तूर-ए-मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
क्या ये वहशत तिरी रूदाद की ग़म्माज़ नहीं
बिसमिल देहलवी
नज़्म
इलाही ख़ैर वो हर दम नई बेदाद करते हैं
हमीं तोहमत लगाते हैं जो हम फ़रियाद करते हैं
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
तुझ को जिस दिल से मोहब्बत थी वो अब दिल ही नहीं
रक़्स जिस का तुझ को भाता था वो बिस्मिल ही नहीं
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
गिरी है बर्क़-ए-तपाँ दिल पे ये ख़बर सुन कर
चढ़ा दिया है भगत-सिंह को रात फाँसी पर
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
मेरी धड़कन की तड़प में रक़्स-ए-बिस्मिल का समाँ है
जैसे दिल पर बेवफ़ाई की छुरी फेरी गई हो