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नज़्म
गर मिरा हर्फ़-ए-तसल्ली वो दवा हो जिस से
जी उठे फिर तिरा उजड़ा हुआ बे-नूर दिमाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये हर इक गाम पे उन ख़्वाबों की मक़्तल-गाहें
जिन के परतव से चराग़ाँ हैं हज़ारों के दिमाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
کرم اے شہ عرب و عجم کہ کھڑے ہيں منتظر کرم
وہ گدا کہ تو نے عطا کيا ہے جنھيں دماغ سکندري
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
न सुर्ख़ी-ए-लब-ए-खंजर न रंग-ए-नोक-ए-सिनाँ
न ख़ाक पर कोई धब्बा न बाम पर कोई दाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये किस की महकी महकी साँसें ताज़ा कर गईं दिमाग़
शबों के राज़ नूर-ए-मह की नर्मियाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अभी दिमाग़ पे क़हबा-ए-सीम-ओ-ज़र है सवार
अभी रुकी ही नहीं तेशा-ज़न के ख़ून की धार
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
नेमतें सब बट चुकीं लेकिन न होना मुज़्महिल
सब को बख़्शे हैं दिमाग़ और ले तुझे देते हैं दिल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ज़िंदगी कुछ और शय है 'इल्म है कुछ और शय
ज़िंदगी सोज़-ए-जिगर है 'इल्म है सोज़-ए-दिमाग़