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नज़्म
कौन सी ऐसी हैं ख़िदमात तिरी बेश-बहा
ख़ूँ-बहा क्यूँ लब-ओ-दंदान-ए-हसीनाँ से लिया
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
इक इक रूह के सामने सवाली बन के खड़ा हूँ
मेरे दिल में अँगारों के दंदाने पैहम जुड़ते और खुलते हैं
मजीद अमजद
नज़्म
आब-दारी में है बढ़-चढ़ कर दुर-ए-ग़लताँ से तू
क्या मुशाबह है किसी के गौहर-ए-दंदाँ से तू