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नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
ये सुन के उन से हँस हँस कहती है शोख़ रंडी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
क्या उन को ख़बर थी सीनों से जो ख़ून चुराया करते थे
इक रोज़ इसी बे-रंगी से झलकेंगी हज़ारों तस्वीरें
जोश मलीहाबादी
नज़्म
शलूका पहने हुए गुलाबी हर इक सुबुक पंखुड़ी चमन में
रंगी हुई सुर्ख़ ओढ़नी का हवा में पल्लू सुखा रही है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मुज़्महिल साअत-ए-इमरोज़ की बे-रंगी से
याद-ए-माज़ी से ग़मीं दहशत-ए-फ़र्दा से निढाल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कुश्ता-ए-मग़रिब निगार-ए-शर्क़ के अबरू भी देख
साज़-ए-बे-रंगी के जूया सोज़-ए-रंग-ओ-बू भी देख