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नज़्म
बाहर किसी करम की बनावट में होंट एक ओंखा ठहरा ठहरा टेढ़ा ज़ाविया सा हैं
कोई मुझे अब पहचानेगा
मजीद अमजद
नज़्म
अजब धीमा धीमा नशा इख़्तिलाफ़ात का
अपने निचले सुरों में कोई फ़िक्र मरबूत करता हुआ ज़ाविया
ताबिश कमाल
नज़्म
नज़र का ज़ाविया बदला तो दिल बदले नज़र बदली
हमारा ही जो रुख़ बदला तो शब बदली सहर बदली
सय्यद मेहदी हुसैन रिज़वी
नज़्म
हर इक शय को तुम्हारा देखने का ज़ाविया कितना जुदा है
मगर इक बात जो सब से ज़ियादा ख़ास है
अमित गोस्वामी
नज़्म
जो किसी तर्के में हैं छुपे हुए और मतरूक हैं
जो ज़र और ज़मीन का ज़ाविया हैं तीसरा