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नज़्म
ज़ख़्म सीने का महक उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कहाँ अब जादा-ए-ख़ुर्रम में सर-सब्ज़ाना जाना है
कहूँ तो क्या कहूँ मेरा ये ज़ख़्म-ए-जावेदाना है
जौन एलिया
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
बाग़्बान-ए-चारा-फ़र्मा से ये कहती है बहार
ज़ख़्म-ए-गुल के वास्ते तदबीर-ए-मरहम कब तलक
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हुवैदा आज अपने ज़ख़्म-ए-पिन्हाँ कर के छोड़ूँगा
लहू रो रो के महफ़िल को गुलिस्ताँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये सुर्ख़ सुर्ख़ फूल हैं कि ज़ख़्म हैं बहार के
ये ओस की फुवार हैं, कि रो रहा है आसमाँ
आमिर उस्मानी
नज़्म
कहते हैं अहल-ए-जहाँ दर्द-ए-अजल है ला-दवा
ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त वक़्त के मरहम से पाता है शिफ़ा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोहसिन नक़वी
नज़्म
गर फ़िक्र-ए-ज़ख्म की तो ख़ता-वार हैं कि हम
क्यूँ महव-ए-मद्ह-ए-खूबी-ए-तेग़-ए-अदा न थे