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नज़्म
इक रोज़ मगर बरखा-रुत में वो भादों थी या सावन था
दीवार पे बीच समुंदर के ये देखने वालों ने देखा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सहेली यूँ तो कुछ कुछ साँवले से हैं मिरे साजन
मगर तेरी क़सम बेहद रसीले हैं मिरे साजन
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
जबीं पर नन्ही नन्ही कहकशाएँ जगमगाती हैं
हिनाई उँगलियाँ लहरा के साजन को बुलाती हैं
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
नई दुनिया नया मस्कन नई उल्फ़त नया साजन
तुझे पुर-अज़-मसर्रत ये हसीं वादी मुबारक हो