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नज़्म
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
नज़्म
हम कितना रोए थे जब इक दिन सोचा था हम मर जाएँगे
और हम से हर नेमत की लज़्ज़त का एहसास जुदा हो जाएगा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हर इक तार-ए-नफ़स में आरज़ू बेदार है अब भी
हर इक बे-रंग साअत मुंतज़िर है तेरी आमद की