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नज़्म
जिए जाता है आख़िर कौन उस के घर में है जिस के
लिए ये सख़्तियाँ सहता है तकलीफ़ें उठाता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
वो क़ैद-ओ-बंद की झेली हैं सख़्तियाँ जिस ने
उड़ाईं जब्र-ओ-ग़ुलामी की धज्जियाँ जिस ने
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
तेरे लिए आसमानों से कोई मो'जिज़ा नहीं उतरा
उजड़ा हुआ घर बे-बिज़ाअ'ती ज़मीन-ओ-आसमान की सख़्तियाँ
इंजिला हमेश
नज़्म
जान दे कर मोल लेते हैं हयात-ए-जाविदाँ
सरफ़रोशों के लिए तो नाम की हैं सख़्तियाँ