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नज़्म
हर वक़्त मगर पढ़ते रहना कम-उम्रों का तो काम नहीं
सब अपनी अपनी कुर्सी पर सुध-बुध बिसराए बैठे हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
साँसों में वो गहरा पन है जैसे बे-सुध सोई हुई है
दिल में सौ अरमान हैं लेकिन मेरी सम्त निगाह नहीं है
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
उन ख़ुदा-आगाह दरवेशों की सूरत रक़्स करता है
जिन्हें ख़ुद अपने तन-मन की कोई सुध-बुध नहीं रहती