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नज़्म
दुनिया से आह जब हो अपनी सफ़र का सामाँ
बालीं पे अक़रबाँ हों सरगर्म-ए-नौहा-ख़्वानी
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
मुँह पे गुमनामी का आँचल ले न ऐ पर्दा-नशीं
यूँ ही सरगर्म-ए-ख़िराम-ए-नाज़ रह ऐ नाज़नीं
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
मुझ को क़स्साम-ए-अज़ल देता अगर दो बाल-ओ-पर
उड़ के होता मैं भी तेरे साथ सरगर्म-ए-सफ़र
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
मैं सरगर्म-ए-सफ़र हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ लेकिन
मिरी बढ़ती हुई वहशत का आलम कोई क्या जाने
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
नय कोई राह-नुमा नय कहीं आवाज़-ए-दलील
'इश्क़ बा-ईं-हमा वारफ़्ता-ओ-सरगर्म-ए-रहील