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नज़्म
पस्ती में सर-बुलंदी सब पर तिरी अयाँ है
''ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी अज़्मत में क्या गुमाँ है''
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
चमक रेग-ए-रवाँ की सर-बुलंदी नख़्ल-ए-सहरा की
दयार-ए-'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम' की उड़ती हुई ख़ुशबू
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
करती हैं सर ग़ुरूर का नीचे उतार कर
पस्ती का सर बुलंद भी करती हैं सीढ़ियाँ