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नज़्म
तो मैं क्या कह रहा था यानी क्या कुछ सह रहा था मैं
अमाँ हाँ मेज़ पर या मेज़ पर से बह रहा था मैं
जौन एलिया
नज़्म
मुश्किलें राह-ए-मोहब्बत में न हाइल होंगी
मैं ने सोचा था कि इस बार निगाहों के सलाम
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
सताने को सता ले आज ज़ालिम जितना जी चाहे
मगर इतना कहे देते हैं फ़र्दा-ए-वतन हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
उस अहद-ए-आफ़यत में इक बार फिर सुला दे
ऐ मेरे अहद-ए-माज़ी फिर इक झलक दिखा दे