aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "سلگنا"
हमारे ही अंतर से सुलगना चाहता हैहम सूरज को
देर तक आँखों में चुभती रही तारों की चमकदेर तक ज़ेहन सुलगता रहा तन्हाई में
ये मंज़रों की झलक खेत बाग़ दरिया गाँववो कुछ सुलगते हुए कुछ सुलगने वाले अलाव
और ये सदियों से जलता सा सुलगता सा वजूदइस से पहले कि सहर माथे पे शबनम छिड़के
फ़हम-ओ-लताफ़त की तमसील शायद कहीं भी नहीं थीसुलगने लगा
ज़र्द चिंगारियों के दामन मेंयूँ सुलगता है सर्द आतिश-दान
तू भी इक सुलगता बनमैं भी इक सुलगता बन
रूह की प्यास बुझानी थी पर यहाँ होंटों की प्यास भी बुझ न सकीबचते सँभलते भी एक सुलगता रोग बनी मिरे जी की लगी
सिसकने सुलगने तड़पने का मौसमदिसम्बर दिसम्बर दिसम्बर दिसम्बर
जुनूँ भी मुझ से बरहम है ख़िरद भी मुझ से बरहम हैसुलगता शौक़ पिघलते वलवले जलती तमन्नाएँ
वक़्त की क़ैद से लम्हात निकल जाते थेख़ूँ में जब भी सुलगता था इरादा कोई
हर दिन रहे सलोनाहर रात मुबारक हो
साँवले जिस्म की हर क़ौस में लहराता हैमुस्कुराती हुई शामों का सलोना जादू
जिसे ख़याल में लाओ तो दिल सुलगने लगेनहीं है यूँ तो नहीं है कि अब नहीं बाक़ी
याद में तेरी मैं सुलगा न सकूँगा आँखेंसख़्तियाँ दर्द की मुझ से न सही जाएँगी
ख़्वाब की लहर में बहते हुए आए साहिलमुस्कुराते हुए होंटों का सुलगता हुआ कर्ब
चुपके चुपके ही चटकने दो इशारों के गुलाबधीमे धीमे ही सुलगने दो तक़ाज़ों के अलाव!
टिमटिमाते दिए की झिलमिल मेंजोत सुलगा लो इक नई दिल में
अपनी साँसों में गर्म बाँहों की प्यास ले कर सुलगने वालीहर एक दोशीज़ा जानती है
न जाने किस लिए इस इंतिहा-ए-हिद्दत परमिरा दिमाग़ सुलगता है जल नहीं जाता
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