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नज़्म
मगर हूँ दिल से मैं इस के लिए सिपास-गुज़ार
लरज़ते हाथों से दामन ख़ुलूस का न छटा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
इक तरफ़ चलते हैं हल इक सम्त चलते हैं ख़र्रास
इतनी मेहनत और लब पर नग़मा-ए-शुक्र-ओ-सिपास
अर्श मलसियानी
नज़्म
सिपाह-ए-महर का फ़सील-ए-शब को इंतिज़ार है
कब आएगा वो शख़्स जिस का सब को इंतिज़ार है