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नज़्म
हम पे मुश्तरका हैं एहसान ग़म-ए-उल्फ़त के
इतने एहसान कि गिनवाऊँ तो गिनवा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
किसी ने ज़हर-ए-ग़म दिया तो मुस्कुरा के पी गए
तड़प में भी सुकूँ न था, ख़लिश भी साज़गार थी
आमिर उस्मानी
नज़्म
मैं आहें भर नहीं सकता कि नग़्मे गा नहीं सकता
सकूँ लेकिन मिरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता