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नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
जब फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ में फ़ुग़ाँ भूल गई है
हर शब वो सियह बोझ कि दिल बैठ गया है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
कुछ काम न आवेगा तेरे ये लाल-ओ-जमुर्रद सीम-ओ-ज़र
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
किसी ग़म-ज़दा देवता की तरह वाहिमा के
गिल-ओ-ला से ख़्वाबों के सय्याल कूज़े बनाता रहा था
नून मीम राशिद
नज़्म
आज तक सुर्ख़ ओ सियह सदियों के साए के तले
आदम ओ हव्वा की औलाद पे क्या गुज़री है?