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नज़्म
अक़्ल ओ दिल ओ निगाह का मुर्शिद-ए-अव्वलीं है इश्क़
इश्क़ न हो तो शर-ओ-दीं बुतकद-ए-तसव्वुरात!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
کيا زميں، کيا مہر و مہ، کيا آسمان تو بتو
ديکھ ليں گے اپني آنکھوں سے تماشا غرب و شرق
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हासिल-ए-इश्क़-ए-मुस्तफ़ा उन से निज़ाम-ए-काएनात
उन के बग़ैर शरअ'-ओ-दीन बुत-कदा-ए-तसव्वुरात
मीर यासीन अली ख़ाँ
नज़्म
'ज़रयून' को आ के सुला क्यूँ न जा''
तुम्हारे ब्याह में शजरा पढ़ा जाना था नौशा वास्ती दूल्हा