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नज़्म
कितनी शमएँ बुझ गईं नूर-ए-सहर के नाम पर
कितने ग़ुंचे गुल हुए सेहन-ए-चमन की गोद में
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कितनी शमएँ बुझ गईं नूर-ए-सहर के नाम पर
कितने ग़ुंचे गुल हुए सेहन-ए-चमन की गोद में