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नज़्म
मेरा ये जुर्म कि मैं साहब-ए-इदराक-ओ-शुऊर
मेरा ये ऐब कि इक शाइर ओ फ़नकार हूँ मैं
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मेरा ये जुर्म कि मैं साहिब-ए-इदराक-ओ-शु’ऊर
मेरा ये 'ऐब कि इक शा'इर-ओ-फ़नकार हूँ मैं
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
अगर वो पल मुझे इक बार मिल जाए तो मैं पूछूँ
कि ये सौदा मिरे सर में समाया किस लिए तू ने
सलमान अंसारी
नज़्म
जिस के चेहरे पे नज़र आए ख़ुदा का परतव
जिस की आँखों में चमकती हो फ़क़त प्यार की लौ