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नज़्म
तू न उन की तरह भरना अर्सा-ए-फ़न में छलांग
कोख ता ठंडी रहे बच्चों से और संदल से माँग
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तुम्हारे लम्स की ख़ुशबू ने संदल कर दिया है
कि मैं पागल थी तुम ने और पागल कर दिया है
जहाँ आरा तबस्सुम
नज़्म
इस लताफ़त-कदा-ए-केफ़ में अफ़्सूँ हैं बहुत
न तिरे जिस्म का संदल न तिरे लब के गुलाब