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नज़्म
किस ने इन आहिनी-दरवाज़ों के पट खोल दिए
किस ने ख़ूँ-ख़्वार-दरिंदों को यहाँ छोड़ दिया
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
पचास को वो क्रॉस कर के कुछ और ख़ूँ-ख़्वार हो गई है
अगर उसे आंटी कहो तो निगाह में हस्पताल रखना
खालिद इरफ़ान
नज़्म
ये क़यामत के हवसनाक ग़ज़ब के ख़ूँ-ख़ार
इन के इस्याँ की न हद है न जराएम का शुमार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जिन की ख़ूँ-ख़्वारी का था सारे ज़माने में ग़रीव
क़िला वो लंका का जो ना-क़ाबिलुत्तसख़ीर था
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
नज़्म
वही बेगम की ख़ूँ-ख़्वारी जो पहले थी सो अब भी है
वही देरीना बीमारी जो पहले थी सो अब भी है
नज़र बर्नी
नज़्म
ग़लत-फ़हमी है उन की 'ख़्वाह-मख़ाह' या मेरी ख़ुश-फ़हमी
समझते हैं मुझे सब शाइ'रों में मो'तबर ज़्यादा