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नज़्म
धूप में लहरा रही है काकुल-ए-अम्बर-सरिश्त
हो रहा है कम-सिनी का लोच जुज़्व-ए-संग-ओ-ख़िश्त
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये शेर-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़, ऐ सबा! कहना
मिले जो तुझ से कहीं वो हबीब-ए-अम्बर-दस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो अफ़्साने जो रातें चाँद के बरबत पे गाती हैं
वो अफ़्साने जो सुब्हें रूह के अंदर जगाती हैं
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
तुम अपने कमरे में गहरी तन्हाइयों में गुम थे
घड़ी की टिक-टिक जो सुई को टेकते गुज़रती
अंबरीन हसीब अंबर
नज़्म
इत्र-ओ-अंबर से हवा है किस क़दर महकी हुई
ख़ुशनुमा महताबियों से है फ़ज़ा दहकी हुई
मोहम्मद सिद्दीक़ मुस्लिम
नज़्म
मुश्क-ओ-अम्बर की महक आती है बाम-ओ-दर से
ऐसे लफ़्ज़ों से मुज़य्यन है मकान-ए-उर्दू