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नज़्म
बू-ए-गुल ले गई बैरून-ए-चमन राज़-ए-चमन
क्या क़यामत है कि ख़ुद फूल हैं ग़म्माज़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरा ग़म्माज़ बना ख़ुद तिरा अंदाज़-ए-ख़िराम
दिल न सँभला था तो क़दमों को सँभाला होता
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
शक्ल फिरती जो तिरी दीदा-ए-ग़म्माज़ में थी
बर्क़-ए-बेताब तिरी जल्वा-गाह-ए-नाज़ में थी
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
तू ने दस्तूर-ए-मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
क्या ये वहशत तिरी रूदाद की ग़म्माज़ नहीं
बिसमिल देहलवी
नज़्म
तिरा फ़ैज़ दहर में आम हो ये ग़ुबार उठ के ग़माम हो
तिरी ख़ाक तेरा पयाम हो ये समझ के इस को बहा दिया
इक़बाल सुहैल
नज़्म
कर दे ग़म्माज़ी मुबादा कहीं छागल की छनक
सुर्ख़ी टीके की जबीं पर ज़रा फैली फैली