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नज़्म
चराग़-ए-दैर फ़ानूस-ए-हरम क़िंदील-ए-रहबानी
ये सब हैं मुद्दतों से बे-नियाज़-ए-नूर-ए-इर्फ़ानी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये अपने हाथ में तहज़ीब का फ़ानूस लेती है
मगर मज़दूर के तन से लहू तक चूस लेती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तिरी ख़ल्वत का हर फ़ानूस इक महताब-ए-लर्ज़ां है
तिरा अबरेशमी बिस्तर नहीं इक ख़्वाब-ए-ख़ंदाँ है
अख़्तर शीरानी
नज़्म
दिल-पज़ीरी-ए-अज़ाँ दिलदारी-ए-नाक़ूस-ए-दैर
सेहन-ए-मस्जिद का तक़द्दुस परतव-ए-फ़ानूस-ए-दैर
शाद आरफ़ी
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
डालियों पर फूलती हो झूलती हो देखती हो भूलती हो
हर नए फ़ानूस पे गिरती हुई परवानगी हो
महबूब ख़िज़ां
नज़्म
ज़िंदा-बाश ऐ इंक़लाब ऐ शोला-ए-फ़ानूस-ए-हिन्द
गर्मियाँ जिस की फ़रोग़-ए-मंक़ल-ए-जाँ हो गईं
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
था हूर का टुकड़ा बुत-ए-तन्नाज़ का मुखड़ा
इक शम्अ' थी फ़ानूस में जो नूर-फ़िशाँ थी