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नज़्म
फ़ुनून-ए-लतीफ़ा ख़ुदावंद के हुक्म-नामे, फ़रामीन
जिन्हें मस्ख़ करते रहे पीर-ज़ादे, जहाँ के अनासिर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तुम्हारी दावत क़ुबूल मुझ को मगर तुम इतना ख़याल रखना
बीयर किसी भी ब्रांड की हो चिकन-फ़्राइड हलाल रखना
खालिद इरफ़ान
नज़्म
और कश्ती के लिए इतनी मोहब्बत से तुम आगे बढ़ना
कि समुंदर की फ़राख़ी भी बहुत कम पड़ जाए
फ़ाज़िल जमीली
नज़्म
तब ये फ़रमाया ख़ुदा ने सब को समझाऊँगा मैं
आदमी का रूप धारण कर के ख़ुद आऊँगा मैं
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
थी वो माँ अहल-ए-दिल और नेक-मनुश नेक-निहाद
हँस के फ़रमाया मिरी जाँ ये नसीहत रख याद