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नज़्म
क़ुर्ब-ए-चश्म-ओ-गोश से हम कौन सी उलझन को सुलझाते रहे!
कौन सी उलझन को सुलझाते हैं हम?
नून मीम राशिद
नज़्म
इंतिहा की चिड़ है मुझ को दो दिलों के क़ुर्ब से
देखता हूँ जब ये फ़ौरन जाल फैलाता हूँ मैं