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नज़्म
वो शाम शाम रंगतों की अन-कही कहानियाँ
बयाँ करूँ वो क़ुर्बतें जो दिल ही दिल में रह गईं
शाहिद मलिक
नज़्म
उठ रही है कहीं क़ुर्बत से तिरी साँस की आँच
अपनी ख़ुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम