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नज़्म
ये ख़त लिखना तो दक़यानूस की पीढ़ी का क़िस्सा है
ये सिंफ़-ए-नस्र हम ना-बालिग़ों के फ़न का हिस्सा है
जौन एलिया
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इक शाम जो उस को बुलवाया कुछ समझाया बेचारे ने
उस रात ये क़िस्सा पाक किया कुछ खा ही लिया दुखयारे ने
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कहाँ तक क़िस्स-ए-आलाम-ए-फ़ुर्क़त मुख़्तसर ये है
यहाँ वो आ नहीं सकती वहाँ मैं जा नहीं सकता