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नज़्म
क़ल्ब-ए-मुज़्तर को बना रखा है घर हिरमाँ ने
और क्या चीज़ है इस दिल के सियह-ख़ाने में
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
राम के हिज्र में इक रोज़ भरत ने ये कहा
क़ल्ब-ए-मुज़्तर को शब-ओ-रोज़ नहीं चैन ज़रा
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
जिस तरह सीने के अंदर क़ल्ब-ए-मुज़्तर बे-क़रार
हो गया हाथों में मेरे ये भी आ कर बे-क़रार
अमजद नजमी
नज़्म
क़ल्ब-ए-मुज़्तर से पुकारी हुई आवाज़ से तेज़
आप की नज़रों के तीर-ए-असर-अंदाज़ से तेज़
शमीम फ़ातिमा जाफ़री
नज़्म
अमीर औरंगाबादी
नज़्म
ख़त को आँखों से लगा कर चूमती हूँ दम-ब-दम
ताकि क़ल्ब-ए-मुज़्तरिब की सारी बेताबी हो कम
अमीर औरंगाबादी
नज़्म
दे रही है लुत्फ़ गुल-मेहंदी की हर जानिब क़तार
इस की हर हर शाख़ पर हैं फूल बेहद बे-शुमार