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नज़्म
माद्दी तारीख़-ए-आलम जिस की तालीफ़-ए-अज़ीम
तास कैपिटाल है या ज़ीस्त का लुब्ब-ए-लुबाब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
आप का नाम असदुल्लाह था नौ-शाह लक़ब
मिर्ज़ा ग़ालिब से हुए बाद में मारूफ़-ए-अदब
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
कहते हैं छोटे बड़े घर के मियाँ मिठ्ठू सब
वाह ये ख़ूब लक़ब मुझ को मिला पिंजरे में
वजाहत हुसैन वजाहत
नज़्म
लक़ब चेहरे का ज़ेबा है उन्हीं के वास्ते यारो
जो एहसासात और जज़्बात की तफ़्सीर होते हैं
अख़तर बस्तवी
नज़्म
दो-जहाँ में है लक़ब ख़ामा-ए-क़ुदरत तेरा
अल्लह अल्लाह ये है पाया-ए-रिफ़अत तेरा