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नज़्म
अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
क्या बात हुई किस तौर हुई अख़बार से लोगों ने जाना
इस बस्ती के इक कूचे में इक इंशा नाम का दीवाना
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ये बातें झूटी बातें हैं ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम 'इंशा'-जी का नाम न लो क्या 'इंशा'-जी सौदाई हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ना-ख़ुदाओं में अब पीछे कितने बचे हैं
रौशनी और अँधेरे की तफ़रीक़ में कितने लोगों ने आँखें गँवा दीं
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
जल्सा-गाहों में ये दहशत-ज़दा सहमे अम्बोह
रहगुज़ारों पे फ़लाकत-ज़दा लोगों के गिरोह
साहिर लुधियानवी
नज़्म
लोग कहते हैं तो लोगों पे तअ'ज्जुब कैसा
सच तो कहते हैं कि नादारों की इज़्ज़त कैसी