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नज़्म
'जोश' के पहलू में जब तुम ही मचल सकते नहीं
फिर घटा के दामनों में बर्क़ लहराई तो क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तख़्त-ओ-ताज की दुनिया तुझ को रास हमेशा आई है
तेरे सर पर तो झंडे की चुनरी ही लहराई है