aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ماپنے"
अपने अमीक़ तजरबे से बताओएक मोहब्बत मापने के लिए
जब रेत होना होतो होंटों की दहकती आरज़ू को मापने का कोई पैमाना
तुम नहीं चारागर कोई माने मगरमैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
सच कह दूँ ऐ बरहमन गर तू बुरा न मानेतेरे सनम-कदों के बुत हो गए पुराने
और अपनी हिफ़ाज़त करोकुछ महीने तुम्हें अपने तस्मे नहीं बाँधने
अगले बरसों की तरह होंगे क़रीने तेरेकिसे मालूम नहीं बारह महीने तेरे
दिल कहता है मैं सुनता हूँमन-माने फूल यूँ चुनता हूँ
ज़िंदगी को गुज़ारने के लिएवक़्त का ज़हर मारने के लिए
वर्ना दुम मारने न पाते तुमपड़ती जो सर पे वो उठाते तुम
की है ये बंदिश ज़ेहन-ए-रसा नेकोई माने ख़्वाह न माने
कोई माने न माने मगर जान-ए-मनकुछ तुम्हें चाहिए कुछ हमें चाहिए
क्या ज़रूरी है कि हम फ़ोन पे बातें भी करेंक्या ज़रूरी है कि हर लफ़्ज़ महकने भी लगे
वो आपस की छेड़ें वो झूटे फ़सानेकोई उन की बातों को कैसे न माने
होंटों पे लगी चुप को आप तज दिया कीजेएक दो महीने में खुल के हँस लिया कीजे
लेकिन आँखों नेक़ुदरत का कहना मानने से
जान दे कर भी ज़माने से न माने हुए हारअपने तेवर में वही अज़्म-ए-जवाँ-साल लिए
दिन गुज़रते गएलोग घटते गए महीने गए
मैं एक सहरा सही मगर मुझ पे घिर के बरसोमुझे महकने का वलवला दो
न अपने नाम का कुछ पास है न घर की लाजगए महीने से हर रोज़ रात को छुप कर
दर्द बाक़ी तो नहींलाख माने न मगर
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