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नज़्म
गुलू में तेरी उल्फ़त के तराने सूख जाएँगे
मबादा याद-हा-ए-अहद-ए-माज़ी महव हो जाएँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
तुम ने देखा कोई उस का पूछने वाला नहीं
था मरज़ में मुब्तला वो क़ैद-ए-निकहत का असीर
मयकश अकबराबादी
नज़्म
दुनिया के दाना और हकीम इस ख़ौफ़ से लर्ज़ां थे सब
तुम पर मुबादा इल्म की पड़ जाए परछाईं कहीं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
मुब्तला पेच में हैं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरह
दर पे लटके हैं बशर ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की तरह