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नज़्म
ज़बानी ख़ादिम-ए-मुल्क-ओ-वतन बनना तो है आसाँ
अगर मख़दूम बनना है तो ख़िदमत की ज़रूरत है
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
ज़बानी ख़ादिम-ए-मुल्क-ओ-वतन बनना तो है आसाँ
अगर मख़दूम बनना है तो ख़िदमत की ज़रूरत है
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
एक बोसीदा हवेली यानी फ़र्सूदा समाज
ले रही है नज़अ के आलम में मुर्दों से ख़िराज