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नज़्म
नया आहंग होता है मुरत्तब लफ़्ज़ ओ मअनी का
मिरे हक़ में अभी कुछ फ़ैसला सादिर न फ़रमाना
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
अज़-सर-ए-नौ फिर मुरत्तब हो जहान-ए-रंग-ओ-बू
ख़ार-ओ-ख़स से फिर हो पैदा कार-ख़ाने रंग-ओ-बू
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
अभी कड़ियाँ मुरत्तब हो रही हैं इक फ़साने की
अभी साअ'त कहाँ है दास्तान-ए-दिल सुनाने की
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
तो क़ौस-ए-क़ुज़ह और भी शोख़ और गर्म रंगों में ढलने लगी
वो सैंकड़ों रंगों से मुरत्तब-शुदा लड़की