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नज़्म
नाफ़ा-ए-मुश्क-ए-ततारी बन कर लिए फिरी मुझ को हर-सू
यही हयात-ए-साइक़ा-फ़ितरत बनी तअत्तुल कभी नुमू
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मुश्क-ओ-अम्बर की महक आती है बाम-ओ-दर से
ऐसे लफ़्ज़ों से मुज़य्यन है मकान-ए-उर्दू