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नज़्म
क्या जाँ-फ़ज़ा है जल्वा ख़ुर्शीद-ए-ख़ावरी का
हर इक शुआ-ए-रक़्साँ मिस्रा है अनवरी का
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
ياں تو اک مصرع ميں پہلو سے نکل جاتا ہے دل
شعر کي گر مي سے کيا واں بھي پگل جاتاہے دل؟
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ताबिश कमाल
नज़्म
आप हँसेंगे मैं जब भी ये मिस्रा पढ़ता हूँ
इस तरह से मुझे उस्तुरा याद आ जाता है
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
कोई मिसरा कहें ताज़ा जो अपने आप में कामिल नज़र आए
अगर ऐसा नहीं मुमकिन तो कोई क़हक़हा
शहराम सर्मदी
नज़्म
मैं नहीं जानता क़सीदा क़ितआ शे'र-ओ-मिस्रा क्या है
दिल में जो आता है वरक़ पर उतार देता हूँ
सचिन देव वर्मा
नज़्म
न होगा ला'ल कोई तेरी क़ीमत का बदख़्शाँ में
तू ही इक मिस्रा-ए-बरजस्ता है क़ुदरत के दीवाँ में
अमजद नजमी
नज़्म
'नज़मी' ये 'जिगर' का भी क्या ख़ूब ही मिसरा है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है